एक था राजा, एक थी रानी / अवतार एनगिल
एक थी पत्नि-नाम था रानी
एक था पति--नाम था राजा
राजा-जिसने रानी को दो पुत्र दिए
रानी---जिसने तीन दुःख जिए
किराए के दड़बानुमा महल में
टूटी कुर्सी के सिंहासन पर बैठ
जब कभी राजा पगड़ी बांधते थे
उनकी पगड़ी का कलफ हलका पड़ने लगता
फिर खुले जीवन के भेद
राजपुत्रों के खर्चों ने
कर दिये राजा की जेबों में छेद
उनकी नुकीली मूछों के बल
गुम होने लगे
उनकी बढ़ती पलकों तले
और छिपने लगे
आँखों के सूरज
पकते मोतिये के बादलों के बीच
इधर रानी करती है पश्चाताप
अपनी तीन भूलों पर
एक,जिसे उसने किया
दो, जिन्हें उसने जना
झल्लाती है बात-बात पर
आख़िर क्यों
राजा ने मुझे अमर फल नहीं दिया ?
दिये तो विष बीज
दी तो बस खीज
हर रोज़
झड़ जाते हैं उसके कुछ बाल
हर रोज़ बढ़ जाती है उसके बालों की बर्फ
सोचते हैं राजा
एक अर्से से रानी को
दर्पण के सामने खड़े नहीं देखा
उधर सोचती है रानी
कई दिन से
राजा को एक प्याला दूध नहीं मिला
बच्चे तो करते हैं अपना ही गिला
ये भी एक ही हैं
कभी आग कभी पानी
कभी,राजा, कभी रानी ।