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एक दिन अचानक / अरविन्द श्रीवास्तव

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एक दिन अचानक
दरवाज़ा खोलते ही
झमाझम बारिश से बचते
बरामदे पर खड़ा मिल जाएगा
वर्षों बिछुड़ा हमारा प्यार
और मैं चौंक उठूँगा

या किसी सफ़र में ट्रेन पर सामने बैठी
या फिर किसी भीड़ भरे बाज़ार में
आमने-सामने हम हों और एक साथ बोले पड़ें- अरे, तुम !

इसी तरह मिलेंगे हम एक दिन अचानक
असंख्य स्मृतियों को सीने में दबाए
जैसे राख के अन्दर दबी होती है आग
फल के अन्दर बीज
और आम जन के सीने में
उम्मीद भरे सपने

इन्हीं सपनों में टटोलते हैं हम
अतीत के खूबसूरत लम्हें
भविष्य का खुशनुमा वर्तमान
और करते हैं एलियन के संग
अंतरिक्ष की सैर
अनगिनत ग्रहों से करते हैं संवाद
और तारों को चाहते टूटने से बचाना
हमारी चुनिंदा तैयारियाँ रहती है प्यार के लिए
गिलहरियाँ ख़बर रखती हैं प्रेम की
प्रेमियों का पता होता है कबूतर को

हमारी छटपटाहट तिलस्म को तलाशती है
हिरण को कस्तूरी मिलने-सा चमत्कार

हमारे पास होता है
अनकही बातों का संग्रहालय भर पुलिंदा
लबालब घड़ा

एक दिन अचानक
जब हम मिलेंगे प्रिय
तब चाहेंगे हम रोना
फूट-फूट कर !