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एक दिन एहिना / केदार कानन
Kavita Kosh से
एक दिन एहिना
एहिना विलीन भ’ जाएब
अकस्मात
टेबुल पर पसरल रहत
अनेक-अनेक पत्र
लिखि नहि सकब जकर उत्तर हम
मोन लागले रहि जाएत
जे लिखि नहि सकलहुँ ओ
लिखि नहि सकलहुँ ई
पत्रक उत्तर धरि नहि लिख सकलहुँ
अकस्मात छूटि जाएत
मित्र-बंधु-परिवार
सभ किछु छूटि जाएत
अनचोक्के
आ विलीन भ’ जाएब
हीक लागले जाएत संग
जकर बीया रोपने रही
फूल तँ भेल भकरार
मजरि तँ गेल अछि गाछ
देखि नहि सकलहुँ
सुआदि नहि सकलहुँ एक्को बेर
ओकर फलकें
एहिना छूटैत अछि राग-बंध
गीत-लय-ताल
प्रेम, जे नहि क’ सकलहुँ एखन धरि
सभसँ बेसी
सभसँ बसेी मोन लागल रहत
तकरा पर
मुदा तखन हाथमे
रहत किच्छु टा नहि
किछुओ नहि
अपन सक्कमे
विलीन भ’ जाएब
कतहु
एकदिन एहिना
अनचोक्के।