Last modified on 18 अप्रैल 2011, at 10:54

एक दिन छोटी बत्तख़ों की तरह / नवनीता देवसेन

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: नवनीता देवसेन  » एक दिन छोटी बत्तख़ों की तरह

चुप रहते-रहते एक दिन
फूटेंगे बोल,
एक दिन नदी की बाँक पर ठिठक कर
मुड़कर खड़े-खड़े हाँक लगा कर कहूँगी : बस..., अब और नहीं।
सूर्य अस्ताचल की ओर जाए या कि सिरहाने जलता रहे
मैं कहूंगी : अब और नहीं।
तब पेड़-पौधों, घास-पातों में सिहरती हवा बहने लगेगी,
सारी कड़वाहट, सारा रूखापन
पारे की मानिन्द भारी हो ढुलक जाएगा
रेत, पत्थर और कँकड़ों के साथ मिल कर
बहुत गहराई में तलछट बन जमा रहेगा।
ऊपर खेलता रहेगा हल्की स्वच्छता का स्रोत
ऊपर झिलमिलाती हज़ारों सूर्य की तिरछी कटारें
शुचिता की लहरों में अपनी देह को बहाती
छोटी बत्तख़ों-सी निश्चिन्त
मैं तब आत्मीय पानी में उतर जाऊँगी।

मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी