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एक दिन लोहा परस पारस के पा जाई / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

एक दिन लोहा परस पारस के पा जाई
ओह दिन सोना बनी, आँखिन में छा जाई

जिन्दगी हर मोड़ पर करवट बदल लेले
आवते मधुमास कोइल गीत गा जाई

जब अमावस रात आवे बार लीं दियना
भोर के ललकी किरिनियाँ मन के भा जाई

चोर के कब चान भावे, छिप के आवेला
चाँदनी के सह सके ना, खुद लुका जाई

आग नफरत के लगावल नीक ना होला
लाग जाई आग, अपनो घर जरा जाई