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एक दिन सचमुच मिलोगे देह से बंधन बँधाने / रुचि चतुर्वेदी

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बिन तुम्हारे जी रहे हैं स्वाँस को विश्वास देकर,
एक दिन सचमुच मिलोगे देह से बंधन बंधाने।

नैन व्याकुल हो रहे हैं आँसूओं ने कह दिया सब,
बाँध ना पाये हैं जूड़ा गेसुओं ने कह दिया सब।
इक नदी प्यासी अधर पर है प्रतीक्षा में तुम्हारी।
एक कविता है प्रतिक्षित राह में बैठी कुँवारी॥

आपका मुख ही दिखायी दे रहा चहुँ ओर हर पल,
आ भी जाओ मन निशा में प्रेम का दीपक जलाने॥
बिन तुम्हारे जी रहे हैं स्वाँस को विश्वास देकर,
एक दिन सचमुच मिलोगे देह से बंधन बंधाने।

प्यार के इस गाँव में कोई नहीं सूनी हैं गालियाँ,
शीघ्र आना सूख ना जायें कहीं ये प्रेम कलियाँ।
देहरी इस देह की कब से रंगोली है सजाये,
किस घड़ी आयें हृदय के द्वार पर सतिये लगाये।

नयन सीपी में छुपे जा भाव के मोती रुपहले,
आ भी जाओ अब उन्हीं का कीमती हरवा बनाने॥
बिन तुम्हारे जी रहे हैं स्वाँस को विश्वास देकर,
एक दिन सचमुच मिलोगे देह से बंधन बंधाने।