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एक दिन / अखिलेश्वर पांडेय
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मैं तुम्हारे शब्दों की उंगली पकड़ कर
चला जा रहा था बच्चे की तरह
इधर-उधर देखता
हंसता, खिलखिलाता
अचानक एक दिन
पता चला
तुम्हारे शब्द
तुम्हारे थे ही नहीं
अब मेरे लिए निश्चिंत होना असंभव था
और बड़ों की तरह
व्यवहार करना जरूरी