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एक दिया वहाँ भी जलाए / शीतल साहू

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लो आ गयी दीवाली का त्योहार
उल्लास और उमंग का लिए संचार
करती धन और समृद्धि का फुहार।

हाँ इस बार थोड़ी परिस्थिति की है मार
प्रकृति ने जता दी अपनी गुस्सा और ग़ुबार
मानव को दिखा दी अपनी क्षमता अपार।

हाँ इस बार हालात है थोड़ी भारी
प्रकृति ने सीखा दी थोड़ी जिम्मेदारी
जीवन में बढ़ा दी है थोड़ी लाचारी।

लेकिन फिर भी हिम्मत से है लड़ रहे
जीवन की रेल को पटरी पर है ला रहे
प्रगति की रफ़्तार को फिर समय के साथ है मिला रहे।

पर नज़र थोड़ा और दौड़ाए
दृष्टि चारों तरफ़ फ़ैलाए
सोच की सीमा थोड़ा आगे बढ़ाए

दिख जाएंगे ऐसे लोग
कमरतोड़ मेहनत जो करते
तंगहाली का जीवन जो जीते
खुद भूखे रहकर दूजो का पेट जो भरते
खुद तेज धूप में जलकर दूजो के घर की छाया सजाते।

जिनकी ज़िन्दगी हो गयी है बेहाल
परिवार जिनके हो गए है बदहाल
समय ने कर दिया है उनका बुराहाल
थोड़ी दूर और चली गयी जिनसे ख़ुशहाल।

आओ हम इस बार
जात पात के दीवार तोड़कर
उच्च नीच के भेद मिटाकर
ईर्ष्या और द्वेष को भुलाकर।

अहम और घृणा को त्यागकर
मतभेद और संकीर्णता से ऊपर उठकर
मानवता के लिए कंधे से कंधा मिलाकर
अपने हिस्से की थोड़ी ख़ुशी निकालकर

हम सब साथ मिलकर
लाचारों के हाथ बनकर
ऐसे घरों की चूल्हे जलाएँ
आओ, एक दिया वहाँ भी जलाएँ।