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एक दुश्मन के लिए / विजयदेव नारायण साही

क्या सचमुच तुम दुश्मन हो?
फिर तुम्हारा नाम इतना घरेलू क्यों लगता है,
जैसे कल तक किसी ने
ख़ुद मुझे इस नाम से
पुकारा हो?