एक दृश्य दो रूप / मोहन अम्बर
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देख लिया है दुनिया मैंने तेरे इस दरबार में।
कितना बल निठुराई में, कितना बल है प्यार में॥
बड़ी बड़ी लहरें सागर की ज़ोर लगाती आ रहीं,
किन्तु जलधि की मस्ती में साहस की किश्ती जा रही,
इसीलिए मैं अपने जीवन अनुभव के आधार पर,
यह छोटी-सी बात आज बतलाने को मजबूर हूँ,
देख लिया है दुनिया, मेरी नैया ने मँझधार में।
कितना बल है तूफानों में, कितना बल पतवार में॥
यहाँ बटोही चलते-चलते हार गये हैं पंथ पर,
उसका कारण चलते हैं पर किसी सत्य से रूठ कर,
इसीलिए इन चलने वालों की इस गहरी भूल पर,
मेरे मन का दर्द अचानक आज कण्ठ पर आ गया,
देख लिया है दुनिया मैंने गीत भरे बाज़ार में।
कितना बल है रूप-सपन में, कितना पीर-पुकार में॥
किए फ़रेब खिलाड़ी ने लाखों अपने शतरंज पर,
किन्तु सरलता मानवता की गोटे फिर भी हैं अमर,
इसीलिए ही हार-जीत की उस सच्ची तस्वीर पर,
सोच समझ कर मेरी साँसें एक सचाई गा रहीं,
देख लिया है दुनिया मैंने युग के दो हथियार में।
कितना बल है शान्ति गीत में, कितना बल तलवार में॥