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एक दृश्य / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

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धूप के खूबसूरत टुकड़े पिघलने के लिए
कोई भी जगह हो सकती है
उसके तन पर एक जगह है
जहाँ रखे जा सकते हैं ओंठ
जहाँ रखे जा सकते हैं कुछ लफ्ज़
एक सुंदर तस्वीर की तरह
सूरज डूब रहा है-
गहरे सुनहरे हो रहे हैं मन के रंग
किरणें रंग रही हैं हर चीज़

तस्वीर में एक लड़की बैठी है
अकेली निरंतर किसी तेज़ सफ़र में
शांति और गति का संगम है
उसका चेहरा दुनिया का अकेला सूर्यमुखी है

विशाल पलकें फूल खिलने की तरह उठती हैं
जीवन के सूर्योदय जैसी गतिविधियाँ
उसके ओंठ धरती के रसों को सम्हाले
उसकी लालिमा जैसे शताब्दियों के सूर्योदय
मेरी धरती का दृश्य
और मैं चल रहा हूँ।