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एक देवता का अनैतिक प्रेम-व्यापार / मनोज श्रीवास्तव

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एक देवता का अनैतिक प्रेम-व्यापार

हे महामानव!
कर्मयोगियों ने गुंजारे हैं
तुम्हारे प्रेमयोग के प्रशस्तिगान,
उतारे हैं निज जीवन में
तुम्हारे प्रेमादर्श प्रतिमान
उघारे-निहारे हैं अबोध अल्हणियों
साध्वी पतिव्रता गृहणियों
और छलकती ग्वालिनों संग
तुम्हारे बहुकोणीय प्रेमालिंगनरत प्रसंग