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एक धुन की तलाश / सुरेश ऋतुपर्ण
Kavita Kosh से
एक धुन की तलाश है मुझे
जो ओठों पर नहीं
शिराओं में मचलती है
पिघलने के लिए ।
एक आग की तलाश है मुझे
कि मेरा रोम-रोम सीझ उठे,
और मैं तार-तार हो जाऊँ,
कोई मुझे जाली-जाली बुन दे
कि मैं पारदर्शी हो जाऊँ ।
एक खुशबू की तलाश है मुझे
कि भारहीन हो
हवा में तैर सकूँ ।
हलकी बारिश की
महीन बौछारों में काँप सकूँ ।
गहराती साँझ के सलेटी आसमान पर
चमकना चाहता हूँ कुछ देर
एक शोख चटक रंग की तलाश है मुझे ।