भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक नई दुनिया के निर्माण की तैयारी / महेश चंद्र पुनेठा
Kavita Kosh से
मेरा तेरह वर्षीय बेटा
गूँथ रहा है आटा
पहली-पहली बार
पानी उड़ेल समेट रहा है आटे को
पर नन्हीं हथेलियों में
नहीं अटा पा रहा है आटा
कोशिश में है कि समेट ले एक बार में सारा
गीला हो आया है आटा
चिपका जा रहा है अँगुलियों के बीच भी
वह छुड़ा रहा है उसे
फिर से एक लगाने की कोशिश
अब परात में चिपके आटे को छुड़ा रहा है
फिर पानी आवश्यकतानुसार
अब भींच ली हैं मुट्ठियाँ उसने
नन्हीं-नन्हीं मुट्ठियों के नीचे तैयार हो रहा है आटा
इस तरह उसका
समेटना
अलगाना
भींचना
बहुत मनमोहक लग रहा है
मेरे भीतर पकने लगा है एक सपना
जैसे रोटी नहीं
एक नई दुनिया के निर्माण की तैयारी कर रहा हो वह ।