भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक नदी थी / जियाउर रहमान जाफरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खोज रहा था बादल आकर
यहीं कहीं पर एक नदी थी
यहीं कहीं पर थी एक बस्ती
यहीं कहीं बरसात हुई थी

लगता था ये सागर जैसा
पानी खूब उछल जाता था
रुक जाता था देखने लहरें
जल तब कैसे लहराता था

यहीं कहीं कुछ पेड़ घने थे
थका मुसाफिर रुक जाता था
ठंड हवा यों जल को छूकर
सबको शीतल कर जाता था

नहीं नदी में पानी है अब
बालू, मिट्टी धूल फ़क़त है
ऊपर जर्जर पूल पड़ा है
लिखा पुराना जैसे ख़त है