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एक नही सौ बार करूँगा / सरोज मिश्र

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मध्य हमारे अवरोधों को नियति मान स्वीकार करूँगा।
किन्तु प्रिये मैं प्रेम तुम्ही से एक नही सौ बार करूँगा।
हां मैं तुमसे प्यार करूँगा एक नही सौ बार करूँगा

देख पिघलती धूप रूप की,सूरज संध्या का हो जाये।
रहो ताकती तुम दीवारें,और दिया पहले सो जाये।
देख दशा खिड़की से चंदा बचपन सी नादानी कह दे।
और नयन के पावन जल को,अम्बर खारा पानी कह दे।

मीत तुम्हारे मन का देखा,निर्मित तब संसार करूँगा।
चार पलों के इस जीवन में चार युगों का प्यार करूँगा।
हाँ मैं तुमसे प्यार करूँगा, एक नही सौ बार करूँगा।

देख मेघ श्यामल कजरारे ,तन से फिसले मन की मछली।
वर्तमान की जगह कुंआरी यादें काते हाँथ की तकली
बीन रहीं तुम जिन धागों को,हवा बावरी ले उड़ जाये।
चौराहे पर खड़ा डाकिया,देख तुम्हे दाएं मुड़ जाये।

प्रणय कोष के रत्न लुटा तब हानि रहित व्यापार करूँगा।
जन्म जन्म तुम मेरी रहना,जन्म जन्म तक प्यार करूँगा।
हाँ मैं तुमसे प्यार करूँगा, एक नही सौ बार करूँगा।