भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक नाज़ुक ख्याल आया है / विजय वाते

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक नाज़ुक ख्याल आया है|
अब ग़ज़ल में कमाल आया है|

चौंध ऐसी, की कुछ नहीं दिखता,
रूप क्या बेमिसाल आया है|

हम में ऐसा भी क्या ख़ास है जी,
कितना भोला सवाल आया है|

ये उदासी भी क्या उदासी है,
एक भीगा रुमाल आया है|

हमने जब-जब भी उसको सोचा है,
शायारी में ज़माल आया है|