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एक नाटकीय औरत के अन्तिम प्रेम का नाटक, चार द्श्य कविताओं में / तेजी ग्रोवर

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                                दृश्य एक

समय : आमना की मृत्यु के तीन साल बाद की एक सुबह
स्थान : आमना के पति के घर का बाहरी कमरा
पात्र : आमना के बच्चे
            धूप में रज कणों की जगह एक विश्वास की तरह आमना
            का अहसास। आमना का पति जो मँच पर नहीं है।


सात बजे हैं
इस कमरे का पर्दा उठ चुका है, आमना
यह मान लिया गया है कि तुम यहीं हो
मान लिए जाने की शुआओं में कणों की जगह
अ-मृत
आ-मना
यहाँ है
इस होने का स्वागत है

तुम्हारे बच्चे हैं घर और तुम देख रही हो कोई औरत है
तुम्हारा पति उसके लिए चाय बना रहा है

इतनी सुबह
नन्ही पीली तितिलियाँ थक गई हैं
सुगन्ध में उनके पर भारी हैं मन की तरह हलके भी
खेल रहे हैं रेत के घर में पानी की लकीर खींच रहे हैं बच्चे
इनके पाँव ठण्डे हैं, आमना, वह तुमसे
   तुम्हारी ही बात कहने के लिए यहाँ है
इस होने का स्वागत है

यह सावन नहीं है कि बादल को कुछ करके
    दिखाना ही है
फिर भी तुम्हारे बच्चों को अनाड़ी की तरह
                 जूता पहना रही है औरत

उसके कन्धों पे कितने सहजे हैं उनके हाथ
कितने ठीक कितने स्वस्थ
कितना पूर्ण है यह चित्र, यह सुबह
कैसे अपरिहार्य किसी रंग-सी उतर आई है

मन ही मन
तुम्हारे पति की आँखों को आँसू से चूमती हुई औरत
सुबह के सात बजे
किन पुरखों से माँग रही है प्यार
किस पुल के पार से तुम आई हो

किस पुल के पार से वह —
मृत्यु है एक, एक है महान कोई प्रेम
तुम आई हो बहनों-सी बतियाती दूर से
यूँ जैसे एक ही देश से आई हो

धूप की शुआओं में कणों की जगह
अ-मृत
आ-मना

चाय की ख़ुशबू फैल रही है, और लो
इस मंच पर प्यार की छाया आई तो है

क्या इसे पात्र कहा जा सकता है

                                 दृश्य दो

पात्र : वह जो मंच पर नहीं है, आमना के बारे में औरत के स्वप्न
         में बोल रहा है
         (दीवार के पास औरत सो रही है)

वह : मेरे बच्चे उसके न होने का चिह्न भर हैं मेरे लिए
        मेरे लिए दुनिया के सारे बच्चे उसके न होने की गूँज हैं
        हर औरत उसके न होने के बीच बैठा एक बीज है
        बोलो
        मैं इस बीज को बो सकता हूँ या नहीं

        (औरत का सिर नींद में अचानक बहुत ज़ोर से दीवार से
        टकरा जाता है)

औरत : तुमने अपने स्वप्न में मेरा सिर दीवार पर पटक दिया
            है। तुम जो मंच पर नहीं हो तुम्हारे ही स्वप्नों से भरा
            मेरा सिर तुम्हीं ने पटक दिया है।

            क्या मैं इसे तुम्हारी गोद में रखकर सो सकती हूँ

            क्या मैं तुम्हारे बच्चों को एक कहानी सुना सकती हूँ

            तुम नहीं सोचते कि मौत के लिए यही मंच ठीक है?

            यह मंच

            जो ठीक तुम्हारे विलाप के बीचों-बीच
            मेरे लिए निकल आया है?

                                 दृश्य तीन

समय : पहले दृश्य की सुबह से कहीं आगे की एक शाम
स्थान : आमना के पति और उनके बच्चों का कमरा
पात्र  : लगभग काले परिधान में औरत

(मेज़ पर बिखरे काग़ज़ों के बीच लैम्प की रोशनी में एक
नीला लिफ़ाफ़ा)

औरत आती है
देखती है कोई नहीं है
हालाँकि वह सीख चुकी है
होने न होने के बीच कोई फ़र्क नहीं होता
कि न होने में होना एक बीज की तरह बैठ जाता है
कि इस तरह विछोह एक भ्रम है —
मन ही मन
किसी की आँखों को लाख आँसू से चूमते रहो
पुरखों से माँगते रहो प्यार
और वह मिलता भी है तो उस नीले लिफ़ाफ़े में पड़े सन्देश की तरह
जो लैम्प की रोशनी में पड़ा है
वह जानती है कि सब जानते हैं उसमें क्या लिखा रहता है

वह जानती है कि फिर भी उस सन्देश के शब्द कुछ नए-नए होंगे
कि वह शब्दों की अनोखी बुनावट से अचानक बेहोश हो जाएगी

किसी ग़रीब की तरह वह तोल लेती है मन ही मन
शब्दों का गूढ़ सम्मोहन एक ओर
प्रेम के सूख जाने को एक ओर

वह फिर भी उठाती है लिफ़ाफ़ा
उसके हल्के काग़ज़ से छुआती है पलकें और गाल
और उसे मेज़ पर यूँ छोड़ती है
जैसे अभी से प्राण छोड़ रही हो

उसे लगता है बच्चों की किताबें फट रही हैं
उसे लगता है उन्हें सिल देना चाहिए

उसे लगता है खिड़कियाँ बन्द हैं
उसे लगता है आईने पर आमना की धूल है

उसे लगता है सृष्टि न उदय होनी है न अस्त

वह अचानक बाहर निकल जाती है
वह दहलीज़ पर रुककर दरवाज़े पर दस्तक देती है
वह कुछ देर सोचती है शायद वे लोग अन्दर हैं
शायद अन्त के संकेत उसने ग़लत पढ़े हैं

उसे यक़ीन नहीं होता
कि वह उसका चेहरा याद करने के लिए दहलीज पर रुकी हुई है
उसे यक़ीन नहीं होता
कि वह अपने चेहरे को छूकर उसका चेहरा याद कर रही है
उसे यक़ीन नहीं होता
मृत्यु का यह भी कोई रूप हो सकता है
कि प्यार को छूने के लिए अपने ही गाल को छू रहा हो कोई

वह भागने लगती है रात के होने की ओर
उसका लगभग काला परिधान आँधी की तरह चल रहा है

गिरते हुए पर्दे की चुन्नटें देख कुत्ते भूँक रहे हैं

वह मुड़ रही है पुल की ओर
जो देख रहे हैं मंच की ओर वे इस पुल का नाम जानते हैं

जो मुड़ रही है पुल की ओर
उसे नहीं लगता कि वह मुड़ रही है

                               दृश्य चार

पुल की रेलिंग के सहारे काले वस्त्र एक खोखले बुत की तरह
                                                                        खड़े हैं
दूर से देखो तो पता नहीं चलता वस्त्रों में कोई है या नहीं
पास से देखो तो पता नहीं चलता कोई है या नहीं

तहें कुछ यूँ हैं आँधी के अचानक थम गए परिधान में
जैसे जचकी में किसी अन्तिम प्रयास को रोक दिया गया हो

पानी में देखो तो लहरें एकदम मौन है