एक निश्चित समय पर / सुमन केशरी
एक निश्चित समय पर नींद खुल जाती है
करवट बदल, चादर लपेट फिर सो जाने का लालच परे ढकेल
उठ बैठती है वह
उँगलियाँ चटखाती
दरवाज़े से घुस पलंग के दाहिनी ओर सोई वह
पाँवो से टटोल-टटोल कर स्लीपर ढूँढ लेती है
और सधी उँगलियाँ उठ खड़े होने तक
जूड़ा लपेट चुकी होती हैं
चाय का पानी चढ़ाने
कूकर में दाल रखने
डबलरोटी या पराठा सेंकने
सब का एक निश्चित समय है
सब काम समय पर होता है
घड़ी की सूइयों-सा जीवन चलता है
अविराम
एक निश्चित समय पर नहा धोकर
बालों पर फूल और माथे पर बिंदिया
वह सजाती है
और निश्चित समय पर द्वार के आस-पास वह
चिड़िया-सी मंडराती है
इस टाइम टेबलवाले जीवन में
बस एक ही बात अनिश्चित है
और वह है उसका ख़ुद से बतिया पाना
ख़ुद की कह पाना और ख़ुद की सुन पाना
अब तो उसे याद भी नहीं कि उसकी
अपने से बात करती आवाज़
कैसी सुनाई पड़ती है..
कभी सामने पड़ने पर क्या
वह
पहचान लेगी ख़ुद को ।