एक न पत्ता, एक न बूटा
भाग शजर का कैसा फूटा
झूठ का ऐसा देखा रुतबा
धान समझ कर सच को कूटा
केवल याद तुम्हारी आयी
प्राण मेरा जब तन से छूटा
गैर भला तो गैर ही ठहरे
अपनों ने जब घर को लूटा
खून के ऑंसू निकले अक्सर
जब- जब मन का रिश्ता टूटा
एक न पत्ता, एक न बूटा
भाग शजर का कैसा फूटा
झूठ का ऐसा देखा रुतबा
धान समझ कर सच को कूटा
केवल याद तुम्हारी आयी
प्राण मेरा जब तन से छूटा
गैर भला तो गैर ही ठहरे
अपनों ने जब घर को लूटा
खून के ऑंसू निकले अक्सर
जब- जब मन का रिश्ता टूटा