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एक पत्र का टुकड़ा / यारास्लाव सायफ़र्त / श्रीबिलास सिंह

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सारी रात पड़ती रही बरसात खिड़कियों पर ।
मैं सो न पाया सारी रात ।
अतः मैंने की रोशनी
और लिखा एक पत्र ।

काश प्रेम उड़ पाता,
वैसा वह कर नहीं सकता निश्चय ही,
और अक्सर नहीं रहता है ज़मीन के करीब,
इस हवा के झोंके से लिपट जाना होगा आनन्ददायक ।

पर आक्रोशित मधुमक्खियों की भाँति
ईर्ष्यालु चुम्बन बरसते हैं झुण्ड में
स्त्री देह की मधुरता पर
और एक अधीर हाथ पकड़ लेता है
जो कुछ भी मिलता है उसकी पहुँच में
और जिसे कामना नहीं करती चिन्हित ।
मृत्यु भी हो सकती है भयविहीन
उल्लास के क्षणों में ।

पर कब किसने की है गणना
समाया होता है कितना प्रेम
खुली हुई दो बांहों के भीतर ।

स्त्रियों को लिखे गए पत्र
मैं भेजता हूँ सदैव कबूतरों द्वारा ।
निश्छल है मेरी अन्तरात्मा।
मैंने कभी नहीं दिया यह काम
किसी बाज़ को ।

मेरी लेखनी में अब नृत्य नहीं करती है कविता
और शब्द रुके रहते हैं आँख के कोनों पर रुके हुए आँसुओं की भाँति।
मेरा सारा जीवन और इसका अन्त
अब है किसी ट्रेन में तीव्रगामी यात्रा मात्र :

मैं खड़ा हूँ डिब्बे की खिड़की के पास
और एक के बाद एक दिन
वापस भाग रहे हैं बीते हुए कल की ओर
शामिल होने को दुख के काले कुहासे में ।
कभी मैं असहाय, थाम लेता हूँ
आपातकालीन ब्रेक ।

सम्भवतः मैं एक बार फिर देखूँगा किसी स्त्री की मुस्कान,
अटकी हुई उसकी बरौनियों पर
किसी नुचे हुए फूल की भाँति ।
सम्भवतः मुझे अब भी मिल सकती है अनुमति
भेजने को एक चुम्बन उन आँखों के लिए
इससे पूर्व कि मेरे लिए वे खो जाए अंधेरे में।

संभवतः एक बार मैं फिर देखूँगा वे नाज़ुक पाँव
गढ़े हुए ऊष्म कोमलता से
किसी रत्न की भाँति
ताकि एक बार फिर मुझे हो सके
स्वाँसावरोध, लालसा वश।

कितना कुछ है जो पीछे छोड़ देना चाहिए आदमी को
क्योंकि ट्रेन निरन्तर आती जा रही है लीटी<ref>यूनानी मिथक कथाओं में पाताल की एक पौराणिक नदी, जिसका पानी पीने से आत्माएँ अतीत की स्मृतियाँ खो देती हैं। </ref> स्टेशन के पास
उसके टिमटिमाते पारिजात वनों के क़रीब
जिसकी सुगन्धि में विस्मृत हो जाता है सब कुछ ।
मानव प्रेम भी ।

वह है अन्तिम पड़ाव :
ट्रेन नहीं जाती इसके आगे ।

शब्दार्थ
<references/>