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एक परिभाषा / मोहन अम्बर
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जो तम के संग-संग जलता है
जो तम के संग-संग ढलता है
जिसका दुख दुनिया का दुख है
बादल पर्वत पर चलता है।
जो औरों हित मिट सकता है
औ मिटने को बन सकता है।
जो जन्म-मरण की परिभाषा
जो गत-आगत में उलझा सा
जिस-सा न जगत में है दूजा
जो करता है धरती-पूजा
मेरे गीतों उस ओर बहो
उसको पूनम का चाँद कहो।