भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक परी / सुरेश विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक परी
प्यारी प्यारी-सी
मेरे सपनों में आती है।

पंख दूध के
जैसे उसके
मुखड़ा दीये की बाती है।

नेत्र प्यार की
भरी गगरिया
छलक छलक छलकाती है।

दांत मोतियों की
माला हैं
हंसती तो दिखलाती है।

अपनी रेशम की
बाहों का
झूला मुझे झुलाती है।

दूर गगन में
ले जाती है
अपने पंखों पर बैठा कर
परी लोक की सैर कराती
है मुझको इठला-इठला कर

रंग-बिरंगे फूलों से
झोली मेरी
भर जाती है।