भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक पर एक फूल सूंघल्हौ पेॅ नासपुट / अनिल शंकर झा
Kavita Kosh से
एक पर एक फूल सूंघल्हौ पेॅ नासपुट
पल-पल खोजै वही पहिलोॅ सुगंध केॅ।
एकरा पेॅ राखी कभी आपनोॅ घटा रं केश
शांत आरो तृप्त हुवै बाँधने ई कंध केॅ।
लाख कोशिश्हौ पेॅ एक याद मिटलै नै कभी
छोड़े नै छै आत्मा ऊ बंधनोॅ के बंध केॅ।
हाला प्याला मृगया मं भांसलै नै याद कभी
कोनो सुख सेज दूर कैलकै नै फंद केॅ॥