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एक पल एक लम्हा न खोएँगे हम / विजय वाते

एक पल, एक लम्हा न खोएँगे हम|
रात लम्बी है, काली है, सोएँगे हम|

ये उदासी की रातें, पहाडों के दिन,
इनको कब तक भला यूँ ही ढोएँगे हम|

बहारें - भीतर सर्द सुखा पड़ा,
आँख की कोर तक ना भिगाएंगे हम|

सब खिलोने हैं, उनके हमारे नहीं,
फिर भी बच्चें हैं, बिलखेंगे, रोएँगे हम|

ख़त्म हो जाए ना ये उदासी कहीं,
आंसुओं को 'विजय' आज बोएँगे हम|