एक पल, एक लम्हा न खोएँगे हम|
रात लम्बी है, काली है, सोएँगे हम|
ये उदासी की रातें, पहाडों के दिन,
इनको कब तक भला यूँ ही ढोएँगे हम|
बहारें - भीतर सर्द सुखा पड़ा,
आँख की कोर तक ना भिगाएंगे हम|
सब खिलोने हैं, उनके हमारे नहीं,
फिर भी बच्चें हैं, बिलखेंगे, रोएँगे हम|
ख़त्म हो जाए ना ये उदासी कहीं,
आंसुओं को 'विजय' आज बोएँगे हम|