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एक पल दो कदम का साथ ही क्या / शहरयार
Kavita Kosh से
एक पल दो कदम का साथ ही क्या
अब खुला, साये की हयात ही क्या
सैंकड़ों ख्वाबों की ज़रब-तक़सीम
इसका हासिल रहेगी रात ही क्या
कुछ तमन्नाएं, चंद पछतावे
हम से लोगों की कायनात ही क्या
पहले करते हैं मदह औरों की
फिर ये कहते हैं तेरी बात ही क्या
देखना आंखों से बहुत कुछ है
हम लिखें दिल की वारदात ही क्या।