भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक पल निहारा तुम्हें / रवीन्द्र भ्रमर
Kavita Kosh से
एक पल निहारा तुम्हें
एक दुख रीत गया ।
वारी तुम्हें एक दृष्टि,
मिली अमित सुधा सृष्टि,
एक क्षण दुलारा तुम्हें —
एक युग बीत गया ।।
वंशी के पहले स्वर,
गूँज गए भू-अम्बर,
एक शब्द वारा तुम्हें
गुन एक गीत गया ।।
तन के मन के अर्पण,
बने प्रीत के दर्पण,
एक दाँव हारा तुम्हें
एक जनम जीत गया ।।
एक पल निहारा तुम्हें
एक दुख रीत गया ।