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एक पल में ही तुम दूर जाने लगे / सूरज राय 'सूरज'
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एक पल में ही तुम दूर जाने लगे।
तुमको पाने में सचमुच ज़माने लगे॥
मेरे हँसने में कितने बहाने लगे।
बेवजह अश्क तुम क्यूँ बहाने लगे॥
ठीक होने लगे क्या, बता ज़िंदगी
ज़ख़्म किस्मत के कुछ-कुछ खुजाने लगे॥
पुतलियों का अभी साफ़ था आसमां
यकबयक क्यूँ दिये टिमटिमाने लगे॥
ओढ़ लेते हैं जाड़े के मौसम में जो
गर्मियों में वही हम बिछाने लगे॥
इक किराये के जुगनू पर कर के यक़ीं
लोग घर के चिरागां बुझाने लगे॥
जाने क्यूँ फ़िक्ऱ होने लगी पीठ की
यार अब हाथ पीछे छुपाने लगे॥
ये लगा झोपड़ी का घड़ा देखकर
काश! यूँ अपनी मिट्ठी ठिकाने लगे॥
उनके फ़ानूस में सोये "सूरज" तो क्या
साथ हम भी दियों को सुलाने लगे॥