एक पुराने दुख ने पूछा / शिशुपाल सिंह 'निर्धन'
एक पुराने दुःख ने पुछा
क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना
मैंने वो घर बदल दिया है
जग ने मेरे सुख-पन्छी के
पाँखों में पत्थर बांधे हैं
मेरी विपदाओं ने अपने
पैरों मे पायल साधे हैं
एक वेदना मुझसे बोली
मैंने अपनी आँख न खोली
उत्तर दिया,चली मत आना
मैंने वोह उर बदल दिया है
एक पुराने ...
वैरागिन बन जाएँ वासना
बना सकेगी नहीं वियोगी
साँसों से आगे जीने की
हठ कर बैठा मन का योगी
एक पाप ने मुझे पुकारा
मैंने केवल यही उचारा
जो झुक जाए तुम्हारे आगे
मैंने वोह सर बदल दिया है
एक पुराने ...
मन की पावनता पर बैठी
है कमजोरी आँख लगाए
देखें दर्पण के पानी से
कैसे कोई प्यास बुझाए
खंडित प्रतिमा बोली आओ
मेरे साथ आज कुछ गाओ
उत्तर दिया,मौन हो जाओ
मैंने वोह स्वर बदल दिया है
एक पुराने ...