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एक प्रतीकहीन कविता / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
सुंदर है
झरने का अधःपतन
गूँज भरा
वेग भरा
ऊँची लहरोंवाला
नदी का नीचा सिर
सुंदर है
सुंदर है
आसमान के सामने
पहाड़ की अकड़
सूरज के सामने
जंगल के मन का
घना अँधेरा
सुंदर है
दूर तक गुँथी हुई
झाड़ियों का अनुत्थान
सुंदर है
पूरे दृश्य के बाद की
अभी तक अदृश्य झलक।