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एक प्रश्न / अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय
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क्या घृणा की एक झौंसी साँस भी
छू लेगी तुम्हारा गात-
प्यार की हवाएँ सोंधी
यों ही बह जाएँगी?
एक सूखे पत्ते की ही खड़-खड़
बाँधेगी तुम्हारा ध्यान-
लाख-लाख कोंपलों की मृदुल गुजारें
अनसुनी रह जाएँगी?
चौखटे की दीमक का
उद्यम अनवरत देख तुम
खिड़की से बाहर न झाँकोगे :
पक्षियों की बीटों का क्या :
उपयोग होगा, इसी चिन्ता में
जमीन को कुरेदते-
ऊपर का मुक्त-मुक्त-मुक्त
आकाश नहीं ताकोगे?
साउथ एवेन्यू, नयी दिल्ली, 6 अप्रैल, 1957