एक फल के टूटकर गिरने का विरोध / लीलाधर मंडलोई
नहीं उगतीं पत्तियां
चिडियां बसेरा नहीं करतीं
खोखल में छूट गए अधकुतरे फलों से
नहीं उगता कोई और पौधा
एक अजगर लिपटा रहता है हरदम
लोग बरकाके रास्ता निकल जाते हैं दूर से
कुल्हाड़ी के कुछ गहरे निशान हैं हर तरफ
बहते रहते हैं पेड़ से आंसू या कि रक्त
नदी टकराती है भरसक जड़ों से सुबह-शाम
रात डूबती है आकंठ बेचैनी में
काले हो गए हैं वनरक्षकों के हाथ
कुछ हैं जो सिर्फ अंगुलियां मरोड़ते हैं
कुछ दिन भर के प्रदर्शन से ऊब
गोश्त काटते हैं कसाई से ज्यादा सुरूचिपूर्ण
शराब बहती है पास के गेस्ट हाउस में
दागता है कोई पियक्कड़ बेसबब गोली
नींद में डूबे पक्षी पंख फड़फड़ाते हैं
इन सबके विरूद्ध होती हैं कहीं मद्धिम आवाज
एक फल के टूटकर गिरने का विरोध
और चतुर्दिक पत्तियां सरसराती हैं