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एक बच्चे की हँसी / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु
Kavita Kosh से
खो गई है
एक बच्चे की हँसी
यहीं कहीं इस भीड़ में ।
कलियों –से होंठो पर
जड़ दी गई हज़ारों कीलें
कँटीले विज्ञापनों की ;
जिनमें प्रति नायक के
टेढ़े-मेढ़े चेहरे हैं
और हैं उधार ली गई आवाज़ें
मकड़ जाल में लिपटी
बेहूदी आकृतियाँ
खोखली हँसी
आपाधापी मचाती
दृष्टिहीन भगदड़
इसी में
चिथ गए हैं
अंकुर -से नन्हें पाँव ।
बुझ गई है दृष्टि
गले में फँसकर
रह गई है चीख
यहीं इसी अंधी भीड़ में
गुम हो गई
एक बच्चे की दूधिया हँसी
हो सके तो
ढूँढकर ला दीजिए ।