भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक बड़ा-सा कूलर / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुक्कू बोला, नानी, कूलर
की है कैसी हवा सुहानी,
पूरी गरमी हुई उड़न-छू
है ना नानी, प्यारी नानी!

हाँ, जब बाहर जाता हूँ मैं
तब लगती धरती अंगारा,
गरमी तो बढ़ती ही जाती
चढ़ता ही जाता है पारा।

हर चौराहे पर यदि नानी
अगर बड़ा-सा हो एक कूलर,
तो दिन भर घूमूँ-घामूँगा
गरमी होगी बस, छू-मंतर।

हँसकर बोली नानी, कुक्कू
तेरी भी है बात निराली,
पर कूलर से ज्यादा अच्छी
होती पेड़ों की हरियाली।

अगर ढेर-से पेड़ लगाएँ
तो गरमी से होगी राहत,
पेडों की ठंडी छाया भी
होगी जैसे मीठा शरबत।

ऐसे कूलर अगर लगे हों
मौसम होगा खूब सुहाना,
गरमी हो या सर्दी, फिर मन
गाएगा मस्ती का गाना।