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एक बड़ी मुस्कान लबों पर हो, तो हो / भावना
Kavita Kosh से
एक बड़ी मुस्कान लबों पर हो, तो हो
टीस बला की दिल के अंदर हो, तो हो
ढाई आखर पढ़ने में हम सफल हुए
काला अक्षर भैंस बराबर हो, तो हो
मैंने तो बस फूल दिया उसको हरदम
हाथ में उसके कोई खंजर हो, तो हो
थक जाती हूँ दुख का मौसम साथ लिए
दिल में पतझड़, सावन बाहर हो, तो हो
बोल के सच ईमान बचाया है मैंने
शोर-शराबा अंदर -बाहर हो, तो हो
मेरे घर में पीड़ा भी पटरानी है
तेरे घर में सुख भी नौकर हो, तो हो
एक इमारत झुग्गी पर इठलायेगी
कोई बंदा घर से बेघर हो, तो हो