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एक बबूल उग आया है मेरे भीतर भी / नीलोत्पल

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तुम्हें देखा वर्षों के बाद
लगा एक बबूल उग आया है
मेरे भीतर भी

तुम्हारी बारीक छोटी पत्तियाँ झरती हैं
याद आते हैं कई चेहरे
जिन्हें छोड़ आया समय की धूल में
उन्हें प्यार करता हूँ
अपनी इस ख़ामोश आवाज़ के लिए

जैसे कहीं से भी उग आती है
तुम्हारे भीतर टहनियाँ,
पत्तियां, पीले फूल, काँटे,
छाल, रंग, गंध, गोंद, लोच और जड़ें

मैं भी कई जगह से काँटेदार हूँ, पत्तेदार हूँ
यह पृथ्वी रिसती है मुझमें
जगह-जगह से टपकता है लसा
तुम्हारे उग आए झरनेदार रूप की तरह

तुम्हारी ढेरों पत्तियाँ झरती है दिन-रात
जैसे वे तैरती हैं नदी के ऊपर
ढेरों बगुले उन्हें चीरते हुए निकल जाते हैं
जैसे वे पृथ्वी पर खिलखिलाती है उनमुक्त
यह इतना कंपनदार अहसास
कि हर एक पेड़ बजता है
तुम्हारी अकंपन आवाज़ में

तुम्हारी लम्बी छितराई टहनियाँ
उसी तरह छूती हैं आकाश
जैसे चिड़ियाएँ बादलों पर उतरती हैं
और एक लकीर उभर आती है ख़ालीपन के दरमियान

तुम्हारी कुरूपता एक शब्द, एक रंग रचती है
जब कोई तुमसे डरता है
मैं देता हूँ तुम्हारे माध्यम से
एक खुला निमंत्रण
आसपास की सोई, सहमी चीज़ों और लोगों को