भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक बार जीवन में आप गर वफ़ा करते. / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
एक बार जीवन में आप गर वफ़ा करते ।
शर्तिया हुज़ूर अपने हाल पर हँसा करते ।।
काश हाले-दिल होता दास्ताने-जांबाज़ी<ref>वीर गाथा</ref>
शौक़ से जिसे शायद आप भी सुना करते ।
आपके लिए यूूँ तो कुफ़्र<ref>अकरणीय,निषिद्ध</ref> था वफ़ा करना
ज़ायका बदलने को एक मर्तबा करते ।
आपकी जगह होते काश एक दिन हम भी
ख़ुद ही मुद्दई<ref>मुक़द्दमा दायर करनेवाला, वादी</ref> बनते ख़ुद ही फ़ैसला करते।
आशिक़ों को तड़पाना ये चलन पुराना है
इस नई सदी में तो आप कुछ नया करते।
रंग तो नहीं लाती काम तो नहीं आती
आपका तो पेशा था आप तो दुआ करते।
छल का बोलबाला था सच का रंग काला था
सोज़ ऐसी दुनिया में और जीके क्या करते॥
शब्दार्थ
<references/>