भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक बार फिर / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
मेरे मन के भीतर
कल्पनाओं की तितली को
सुनहरी रंग देकर, तुम
समय की धुंध में खो गए, तब
असमय ही
उस भावनामयी तितली को
अपने सुनहरी पंख समेट
मन की अतल गहराइयों में
सो जाना पड़ा…
लेकिन आज
जब, तुम मुझ तक
लौट आए हो,
पूर्ण अपनत्व के साथ
तो मैंने एक बार फिर
सुखद भविष्य का विश्वास
तुम्हारे हाथों में
सौंप दिया है!