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एक बार फिर / उमा अर्पिता
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					मेरे मन के भीतर
कल्पनाओं की तितली को
सुनहरी रंग देकर, तुम
समय की धुंध में खो गए, तब
असमय ही
उस भावनामयी तितली को
अपने सुनहरी पंख समेट
मन की अतल गहराइयों में
सो जाना पड़ा…
 
लेकिन आज
जब, तुम मुझ तक 
लौट आए हो,
पूर्ण अपनत्व के साथ
तो मैंने एक बार फिर
सुखद भविष्य का विश्वास
तुम्हारे हाथों में
सौंप दिया है!
	
	