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एक बूँद जल / रामनरेश पाठक
Kavita Kosh से
मेरे गौशाला के खूंटों पर
दम तोड़ते
तीन जोड़ी बैलों की
आँखों की गहराई में
रुका हुआ एक बूँद जल
हर क्षण दिखता है
मुझे नींद नहीं आती।
टूटी खात पर
हताश पड़े
मेरे बापू की पथरायी, निर्निमेष
आखों की गहराई में
कठिनाई से रिसता हुआ एक बूँद जल
हर क्षण दिखता है
मुझे नींद नहीं आती।
मेरे खेतों में फट आई
दरारों के तलान्त पर
उबलता हुआ एक बूँद जल
हर क्षण दिखता है
मुझे नींद नहीं आती।