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एक बूँद / कविता कानन / रंजना वर्मा

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बादल की गोद छोड़
चली धरा की ओर ।
अनजान पथ
हुई व्याकुल
और श्लथ ।
अज्ञात भविष्य
अनन्त आशंकाएं
करने लगी बारंबार
अपने कृत्य पर
पुनर्विचार।
फिर सोचा
अब जो भी हो
जैसा भी हो
करना होगा सामना
हर परिस्थिति का
और तभी
बहने लगी
शीतल हवा
उड़ा ले गया
हवा का झोंकाउसे
फूलों की वादियों में
रख दिया सँभाल कर
गुलाब की पंखुरी पर
झलमलाने लगा
उस का रूप
झलक पायी
मोतियों की
मुस्कुराने लगी
वो नन्ही सी बूँद।