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एक बूंद के लिए / माया मृग
Kavita Kosh से
तुम चाहते हो
ढेर सारे बादल आयें
और तुम्हारे हहराते
चित्कारते खेतों पर
टूटकर बरस जायें
और तुम
खड़े देखते रहो कि
वर्षा में मोर
कैसा सुंदर नाचता है !
नहीं मित्र
बादल यूं नहीं बरसते।
जाने कितनी तपिश सहकर
पानी को भाप होना होता है
फिर ठण्ड में जमकर
बार-बार टकराना होता है
किसी निर्मम पहाड़ से।
पानी की एक बूंद के लिए
आग का पूरा दरिया पीना पड़ता है
मित्र !
बादल
तुम्हारी आँख मे मोरपंखी स्वप्न नहीं
वर्षा के पहले की
घुटन और उमस
देखना चाहते हैं !