एक बेरोज़गार की कविता (कविता) / सुन्दरचन्द ठाकुर
1
चाँद हमारी ओर बढ़ता रहे
अँधेरा भर ले आगोश में
तुम्हारी आँखों में तारों की टिमटिमाहट के सिवाय
सारी दुनिया फरेब है
नींद में बने रहें पेड़ों में दुबके पक्षी
मैं किसी की जिन्दगी में खलल नहीं डालना चाहता
यह पहाड़ों की रात है
रात जो मुझसे केाई सवाल नहीं करती
इसे बेखुदी की रात बनने दो
सुबह
एक और नाकाम दिन लेकर आएगी
2
कोई दोस्त नहीं मेरा
वे बचपन की तरह अतीत में रह गये
मेरे पिता मेरे दोस्त हो सकते है
मगर बुरे दिन नहीं होने देते ऐसा
पुश्तैनी घर की नींव हिलने लगी है दीवारों पर दरारें उभर आयी हैं
रात में उनसे पुरखों का रूदन बहता हैं
माँ मुझे सीने से लगाती है उसकी हड्डियों से भी बहता है रूदन
पिता रोते हैं माँ रोती है फोन पर बहनें रोती है
कैसा हतभाग्य पुत्र हूँ, असफल भाई
मैं पत्नी की देह में खोजता हॅू शरण
उसके ठंडे स्तन और बेबस होंठ
कायनात जब एक विस्मृति में बदलने को होती है
मुझे सुनाई पड़ती है उसकी सिसकियाँ
पिता मुझे बचाना चाहते हैं माँ मुझे बचाना चाहते हैं
बहनें मुझे बचाना चाहते है धूप, हवा और पानी मुझे बचाना चाहते हैं
एक दोस्त की तरह चाँद बचाना चाहता है मुझे
कि हम यूँ ही रातों को घूमते रहें
कितने लोग बचाना चाहते हैं मुझे
यही मेरी ताकत है यही डर है मेरा
3
इस तरह आधी रात
कभी न बैठा था खुले आँगन में
पहाड़ों के साये दिखाई दे रहे है नदी का शोर सुनाई पड़ रहा है
मेरी आँखों में आत्मा तक नींद नहीं
देखता हॅूँ एक टूटा तारा
कहते हैं उसका दिखना मुरादें पूरी करता है
क्या माँगूँ इस तारे से
नौकरी!
दुनिया में क्या इससे दुर्लभ कुछ नहीं
मैं पिता के लिए आरोग्य माँगता हॅँू
माँ के लिए सीने में थोड़ी ठंडक
बहनों के लिए माँगता हॅँू सुखी गृहस्थी
दुनिया में कोई दूसरा हो मेरे जैसा
ओ टूटे तारे
उसे बख़्श देना तू
नौकरी!
4
सितारों
मुझे माफ कर देना
तुम्हारी झिलमिलाहट में सिहर न सका
पहाड़ों
माफ करना
मुझे सिर उठा कर जीना न आया
पुरखों
मुझ पर खत्म होता है तुम्हारा वंश
5
मेरे जाने का वक़्त हुआ जाता है
मैं खु़श हूँ कि कोई दुश्मन नहीं मेरा
मुझ नकारा के पास हैं उदार माता-पिता
इस उम्र में भी पालत-पोसते मुझे
मेरी चिन्ता में खाक होते हुए
वे मर चुके होते तो
ज़िन्दगी कुछ आसान होती
6
मैं क्यों चाहूँगा इस तरह मरना
राष्ट्रपति की रैली में सरेआम जहर पी कर
राष्ट्रपति मेरे पिता नहीं
राष्ट्रपति मेरी माँ नहीं
वे मुझे बचाने नहीं आएँगे
7
मैं जानता हॅूँ मैं खोखला हो रहा हॅँू
खोखली मेरी हँसी
मेरा गुस्सा और प्यार
एक रैली में किसी ने कहा मुझे
उठा ले हथियार
मरना ही है तो लड़ कर मरें
मैं किसके खिलाफ उठाऊँ हथियार
सड़क चलते आदमी ने कुछ नहीं बिगाड़ा मेरा
इस देश में कोई एक अत्याचारी नहीं
दूसरों का हक छीनने वाले कई हैं
मैं माफ ही कर सकता हॅूँ सबको
इतना ही ताक़त बची है अब
8
इस साल वसन्त में मेरी बेटी दो बरस की हो जाएगी
खुशी आएगी हमारे घर में भी वसन्त में हम मनाएँगे
विवाह की तीसरी सालगिरह
मेरी बहन ने नौकरी के लिए की है किसी से बात
वसन्त तक मिलगा जवाब
वसन्त आने में
एक जन्म का फ़ासला है
9
उम्मीदों
शुक्रिया तुम्हारा तुम्हीं रोटी बनीं तुम्हीं नमक
गरीबी
तुमने मुझे रोटी और नमक बॉंटना सिखाया
आवारा कुत्तों
पूरी दुनिया जब दूसरे छोर पर थी इस छोर पर तुम थे मेरे साथ
बेघर
शाम के धुँधलके में
भोर का स्वागत करते हुए
10
मेरे काले घुँधराले बात सफेद पड़़ने लगे हैं
कम हँसता हॅूँ बहुत कम बोलता हूँ
मुझे उच्च रक्तचाप की शिकायत रहने लगी हैं
अकेले में घबरा उठता हॅँू बेतरह
मेरे पास फट चुके जूते हैं
फटी देह और आत्मा
सूरज बुझ चुका है
गहराता अँधेरा और गहरा
और गहरा
मैं आसमान में सितारे की तरह चमकना चाहता हूँ।