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एक बेर फेरसँ / सुकान्त सोम

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उत्तेजनाक इहो राति दिन ओहिना बीति गेलै
अनावृत्त धरती पसरैत रहलै
वंशीवटक लाल फूल, टुह-टुह लाल मुदा
ककरो नहि, कोइलीक उपकार भेलै आ
मौसम ओहिना गुजरि गेल
घटनाहीन तीस टा मौसमक यात्रामे
गंधहीन कुसुम कहियो आकर्षित नहि कएलक आ
छोट-छोट कथामे अपन व्यथा गबैत रहलहुँ कवितामे

पाथर तोड़बाक शोर जन्म लैक
जल प्रवाहक संगीतक सरगम बजैक
धान रोपैत मजूरक बांहिक मांसल उभार व्यक्त होइक
गुप्तीक सोझाँ ठाढ़ होएबाक शक्ति जगैक मुदा
कवितामे एखनो धरि ग्रीष्मक विस्फोट नहि भैलैए
उत्तेजनामे बहकैत गुमकी नहि फटलैए
यौवनक एहि सांध्य बेलामे क्षितिज पर
एकटा अंतरंग परिचित आकृति
सांध्य आकाशक एकसर ताराकें आरो उदास बना रहल छै
आ एहनामे
हमरा तीसो टा ग्रीष्म एना किऐ मोन पड़ैए ! सत्ते
हमरा अपन कथा कहबाक आव नव ढंग ताक’ पड़त कि
अभिव्यक्ति चोटसँ ई गुमकी फटैक
अन्हारकें इजोतक एकटा फाँक चिरैक