भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक भरोसा / रश्मि भारद्वाज
Kavita Kosh से
मुझे बनना था ठोस
दायरे में घिरा हुआ
खाँचों में बन्द किए जा सकने योग्य
मैंने चुना पानी हो जाना
जब बहना था मुझे
पानी की ही तरह
बहा देना था सारा ताप
मैंने चुना आग हो जाना
जब मान लेना था मुझे
हृदय होता है
शरीर में रक्त और ऑक्सीजन
पहँचाने का एक अंग मात्र
मैंने चुना इसका दिल होना
जहाँ चुपके से रख दिया जाता है
एक भरोसा