कई प्रसन्न बच्चों के बीच एक भूखा बच्चा
उछलता-कूदता भूला रहता है अपनी भूख
भूखा वह किसी से नही डरता
दिल्ली की गोविन्दपुरी और बम्बई की उपनगरीय बस्तियों
की सड़ान्ध के बाहर एक बेहतर ज़िन्दगी का सपना
दिखाते अपने बाप के साथ वह ख़ूब उछलता
प्रतियोगियों के समारोह में।
चित्र बनाते बच्चों के बीच एक कलाकृति वह भी बनाता
नृत्य करते बच्चों के बीच एक कलाकृति वह भी बनाता
नृत्य करते बच्चों के पैरों की थाप पर
थिरकते हुए वह मुस्कराना नहीं भूलता
सफल या असफल घोषित किए जा रहे बच्चों के बीच वह डटा रहता अकेले।
फ़ास्टफ़ूड के सजे-धजे स्टालों की ओर
से आती हुई ख़ुशबू फैलती
अपनी खाली जेब वह यों टटोलने लगता
जैसे खेल में एक बच्चा ख़रीद लेता है
झूठ-मूठ के रुपये में दुनिया भर की चीज़ें
वह बार-बार देखता माँ के आने का रास्ता।