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एक मिशअल थी बुझा दी उस ने / अब्दुल हमीद

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एक मिशअल थी बुझा दी उस ने
फिर अँधेरों को हवा दी उस ने

किस क़दर फ़र्त-ए-अक़ीदत से झुका
और फिर ख़ाक उड़ा दी उस ने

दम-ब-दम मुझ पे चला कर तलवार
एक पत्थर को जिला दी उस ने

याँ तो आता ही नहीं था कोई
आन कर बज़्म सजा दी उस ने