एक मुलाकात मौत से / नंदा पाण्डेय
इत्मिनान से एक मुलाकात
मौत से करना चाहती हूँ
छू कर देखना चाहती हूँ
अपनी चिता को
सूंघना चाहती हूँ, उस गंध को
जो जलते हुए शरीर से निकलती है
महसूस करना चाहती हूँ
जलते हुए शरीर में
आत्मा का ठिठुरना
कैसा होता होगा
नहा कर शीतल नदी में
इत्मिनान से लेट जाना चाहती हूँ
चिता पर
भर्राए गले से गुनगुनाना चाहती हूँ
वो रोमांटिक गाना
जो तुम सुनना चाहते हो
सुनो!
तुम अपनी आँखें नम मत करना
रख देना मेरी लाश के सिरहाने
मेरी कविता वाली डायरी
और हाँ!
रुदन, क्रंदन, शिकवे शिकायतें
सब डाल देना
मेरी जलती हुई चिता में
सब लेकर चली जाऊँगी अपने साथ
वैसे भी बिना मेरे
ये तुम्हारे किसी काम के नहीं
जानती हूँ ,
सामने मिलों तक बिखरी रेत
और शांत हवा के झोंके तुम्हें मुझसे
दूर ले जाने आएंगे
पर आखिरी गुजारिश है तुमसे
रुके रहना तुम
मेरे दम घुटने तक, और
शेष बची मेरी अस्थियों को नेह के साथ
उछाल कर फेंक देना
सीपी, शंख, मछलियों और
केकड़ों के बीच
फिर लौट आना
मेरी अनजान दुनियां
की जिज्ञासा लिए
अपनी अर्गलाविहीन दुनियां में
टांग देना मेरा दुपट्टा खिड़की पर
प्यार से पढ़ना
गीली स्याही में डूबी हुई
मेरी कविता को
जोड़ना हिसाब भूत और वर्तमान का
तब, जब मेरी आत्मा और तुम्हारा विवेक
दोनों साथ हों
पूछना पूर्णिमा के गर्वित मयंक से
मेरा हाल
देखना कई सुंदर-सुंदर दृश्य उभरेंगे...!
एक लंबी शांति के बाद
फिर लौटना चाहूँगी
तुम्हारे ही पास
इस बार तुम कुछ मत पूछना
मत दोहराना मेरे इतिहास को
बस रोक लेना दुखों के
बहते वेग को
वैसे भी तुम्हारी बातों का असर
तन पर नहीं मन पर होता है...जानते हो न...!