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एक मुल्क / महमूद दरवेश
Kavita Kosh से
एक मुल्क पौ फटने के कगार पर,
कुछ ही पलों में
ग्रह सो जाएँगे शायरी की जुबान में ।
कुछ ही पलों में हम इस लम्बे रास्ते को विदा कहेंगे
और पूछेंगे : कहाँ से हम शुरूआत करें ?
कुछ ही पलों में
हम अपने ख़ूबसूरत पर्वत नार्सीसस को सावधान करेंगे
अपने ही प्रतिबिम्ब से उसके मोह के खिलाफ; तुम अब और
शायरी के काबिल नहीं, इसलिए देखो
राहगीर की ओर