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एक मूरत और / आरती मिश्रा

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मीरा गाती रही
साँसों के झाँझ-मजीरे बजा-बजाकर

समझाती रही प्रेम की पीर
‘मेरो दरद न जाने कोय’
न प्रेम जाना किसी ने न दीवानगी

बस, एक मूरत
और जोड़ दी मन्दिर में