भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक मृत्युगान / नवारुण भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
मैंने तो नहीं की भूल
वही लाई है- फूल।
कुछ टूटे पत्ते थे फूलों के साथ
फूल वाला बैठा था थिगली वाला छाता था
आँसुओं से भीग गए सर के बाल
मैंने तो नहीं की भूल
वही लाई है- फूल।
फूल आए गाड़ी पर सवार
फूल आए मुँह करके बंद फूलों में समा गए फूल
फूल आए मरे -मरे फूलों का पल्ला पकड़े
फूल आए ढँक गए मोम की गुड़िया को।
मैंने तो नहीं की भूल
वही लाई है- फूल।
पँखुरियाँ लिपटी थीं आग की लपटों में
सुगंध समाई थी टाट बुनने की मशीन में
आग के पत्ते और लता आग की आकुलता
छुआ ज्यों ही पिघल गई मोम की गुड़िया
मैंने तो नहीं की भूल
वही लाई है- फूल।